राजेश बैरागी।पर्वत के उत्तुंग शिखर पर बर्बरीक के शीश सा टंगा मैं ग्रेटर नोएडा में सुपरमैन की भांति हर क्षण उड़ रहे पत्रकारों को बहुत बेबसी से देख रहा हूं। पत्रकारों के समक्ष प्रथम दृष्ट्या तीन चुनौती दिखाई पड़ती हैं। सबसे पहले उन्हें नियमित रूप से समाचारों का संकलन करना है। हिन्दी फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ में नायिका नायक को अपने रूप सौंदर्य से बहुत रिझाती है,नायक रीझता भी है। परंतु वह अपने पांच रुपए बारह आने मांगना नहीं भूलता क्योंकि यदि उसने पैसे नहीं लिए तो उसका भईया उसे छोड़ेगा नहीं। प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक हर मीडिया संस्थान की प्राथमिकता समाचार ही हैं।कॉलम और स्पेस भरने की विवशता खबर खोजती भी है और खबर बनाती भी है। दूसरी चुनौती समाचारों तक पहुंच और उनके उचित प्रस्तुतिकरण की है। सोशल मीडिया के इस युग में जब हर कोई रिपोर्टर बन चुका है तो समाचारों के अभाव का संकट तो नहीं रहा है। दिनभर में इतने समाचार और संदेश स्वत: प्राप्त होते रहते हैं कि आवश्यक समाचारों का चयन करना भी एक चुनौती ही है।गुजरे जमाने में दिन में दो तीन प्रेस वार्ता, थाना, तहसील, कलेक्ट्रेट का भ्रमण, अधिकारियों से अधिकारिक बयान और नाम न छापने की शर्त पर अंदर की खबरों से समाचार पत्र की साज-सज्जा होती थी। पाठक बेसब्री से सुबह और सांध्यकालीन समाचार पत्रों की प्रतीक्षा करते थे और उनमें प्रकाशित चुनींदा समाचार पढ़कर संतोष प्राप्त करते थे।अब अनगिनत अखबार, उनके डिजिटल संस्करण, सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समाचारों की भरमार है और पाठक यह कहकर पन्ना और चैनल बदल रहे हैं कि सब बायस्ड(पक्षपाती) है।तीसरी चुनौती पत्रकार के जीवन पालन से जुड़ी है। पारिवारिक और सामाजिक जीव होने के कारण उसके बहुत से वैसे ही दायित्व होते हैं जैसे शेष अन्य लोगों के। एक समाचार पत्र स्वामी ने मुझे उसके प्रकाशन के लिए समाचार लेख आदि लिखने का आग्रह किया। उसने बताया कि उसका संस्थान तीस चालीस रुपए प्रति समाचार/आलेख का भुगतान करता है और लेखक का नाम उसके लेख या समाचार के साथ प्रकाशित नहीं किया जाता है।अनेक राष्ट्रीय समाचार एजेंसी भी ऐसा ही करती हैं।लेख और समाचार के चयन का सर्वाधिकार तो संपादक का होता ही है तो आप अपने लिखे को चाहे जितना अच्छा समझें, संपादक के खारिजे पर सवाल नहीं उठा सकते हैं। तथ्यात्मक समाचारों को मीडिया संस्थान अपने निजी और व्यवसायिक संबंधों की भेंट चढ़ा देते हैं।इन तीन चुनौतियों के मकड़जाल में फंसे सुपरमैन पत्रकार करतब दिखाएं कि किसी प्रकार पत्रकार बने रहें। मैं पर्वत के उत्तुंग शिखर पर बर्बरीक के शीश सा टंगा कुछ पत्रकारों को करोड़ों एकत्र करने के आरोप का मुकुट लगाए और बड़ी बड़ी गाड़ियों में लदे देखकर हतप्रभ हो उठता हूं। संभवतः यही लोग सुपरमैन हैं








Leave a Reply