बांकेबिहारीजी किसके?

राजेश बैरागी।वृंदावन के विश्वप्रसिद्ध बांकेबिहारीजी धाम में आजकल क्या चल रहा है? समूचे जगत को अपनी मुरली पर नचाने वाले बांकेबिहारी सेवायतों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई पावर्ड कमेटी के बीच चल रही जोर आजमाइश में फंस गए हैं। उनके दर्शन के समय और विराजने के स्थान को लेकर दोनों पक्षों और सेवायतों के भी दो पक्षों के बीच असहमति बनी हुई है। क्या यह झगड़ा बांकेबिहारीजी के प्रति आस्था और समर्पण को लेकर है? भगवान जिसे कण कण में व्याप्त माना जाता है, की मूर्ति को प्रदर्शित करने पर कोई भक्त या आस्थावान विवाद कैसे खड़ा कर सकता है।दो वर्ष पहले गोवर्धन की परिक्रमा के दौरान पूंछरी का लौठा नामक स्थल पर श्रीकृष्ण मंदिर में दर्शनार्थियों के बीच देखते ही देखते मारपीट आरंभ हो गई।वे प्रभु के निकट पहुंचने की गैरजरूरी प्रतियोगिता में भिड़ गए थे।मैं थोड़ी दूर खड़ा लीलाधर को अपने निरे मूर्ख भक्तों की हरकतों पर मंद मंद मुस्काते देखता रहा। भक्तों में भगवान को पाने की प्रतियोगिता हो सकती है परंतु यह प्रतियोगिता परस्पर नहीं बल्कि स्वयं से ही हो सकती है। बांकेबिहारीजी मंदिर में जो हो रहा है वह न तो भक्तों के बीच कोई स्पर्धा है और न मंदिर के प्रति उनके दायित्वों को लेकर कोई प्रतियोगिता ही है। दरअसल सेवायतों का बांकेबिहारीजी मंदिर एक बड़ा जमा जमाया धंधा है। श्रृंगार आरती दर्शन गर्भगृह से हों या जगमोहन से,यह सब धंधे का मामला है। सेठों, धनिकों को विशेष दर्शन कराने के नाम पर दिनभर पांच सौ हजार रुपए झाड़ लेने का धंधा दिनभर चलता है।फूल बंगला और ऐसे ही आयोजन बड़े धंधे के हिस्से हैं।आम दर्शनार्थी और दीन हीन भक्तों को भीड़ में धकेले जाने के दौरान बांकेबिहारीजी की झलक सौभाग्य से ही प्राप्त होती है। सेवायतों की दृष्टि में ऐसे भक्तजन हेय हैं। हालांकि भक्तों की यही भीड़ उनके धंधे की दुकान का निर्माण करती है।मेरा प्रश्न यह है कि श्री बांकेबिहारीजी पर किसका अधिकार है? हाई पावर्ड कमेटी को व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए गठित किया गया है। सेवायतों की मुठमर्दी के समक्ष यह कमेटी अभी किंकर्तव्यविमूढ़ दिखाई दे रही है। क्यों नहीं सेवायतों को एक स्थाई मासिक भत्ते के साथ एक ओर बैठा दिया जाना चाहिए?श्री बांकेबिहारीजी पर पहला और अंतिम अधिकार भक्तों का है और उनके अधिकार का अपहरण करने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया जाना चाहिए

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