राजेश बैरागी।मृत्यु की अवस्था कुछ भी हो,इतने भौतिक विकास के बाद भी मानव जाति उसके शोक से मुक्त नहीं हो सकी है। प्रियजन, परिजन, मित्र, रिश्तेदार आयु पूरी करने वाले और कष्टों से ग्रस्त व्यक्ति की मृत्यु पर राहत की सांस चाहे लें परंतु उल्लासित तो नहीं हो सकते हैं।वह मुझसे आयु में मात्र पंद्रह सोलह बरस बड़ी थीं परंतु उन्होंने मुझे गोद में खिलाया था और जब भी मिलती थीं तो फुफेरी बहन होने के बावजूद मां जैसा स्नेह लुटाती थीं।71 वर्ष की आयु में आज जब उनका हृदयाघात से देहांत हुआ तो उनके आगे उनके सेवानिवृत्त शिक्षक पति,दो पुत्र और पांच पुत्रियों और पोते पोतियों तथा नातियों का एक भरा पूरा समृद्ध परिवार खड़ा था।आयु संबंधी कुछ शारीरिक समस्याएं उन्हें थीं परंतु खूब चलती फिरती और मनपसंद खाती पीती थीं। सिकंदराबाद (बुलंदशहर) कस्बे के उनके निवास से शवयात्रा प्रारंभ हुई। उनके सगे तीन भाई, चार दामाद,दो समधी,नाती पोते, भतीजे मैं और मेरा पुत्र तथा आसपास के सैकड़ों लोग साथ चले। एक वृद्ध सज्जन राम नाम सत्य है का उच्चारण करते तो शेष लोग सत्य बोलो गत्य है बोलकर इस अमर पंक्ति को पूरा करते। पुष्प वर्षा की जा रही थी।दनकौर सिकंदराबाद मुख्य मार्ग से जीटी रोड होते हुए सिकंदराबाद जेवर मार्ग पर श्मशान घाट पहुंचने तक कई प्रकार के नजारे देखने को मिले। सड़क पर फल आदि की रेहड़ी लगाने वाले मुस्लिम समाज के अधिकांश लोगों ने शवयात्रा को देखकर अनदेखा किया। प्रोद्योगिकी ने मोबाइल जैसे किसी और उपकरण का आविष्कार नहीं किया है जो आदमी को सामने घट रही बड़ी से बड़ी घटना से बेखबर कर दे। हालांकि उन रेहड़ी वालों के साथ खड़े कुछ लोग शवयात्रा के साथ कुछ कदम चले।हो सकता है कि वे मुस्लिम न हों। जीटी रोड पर एक वृद्ध मुस्लिम ने बाकायदा सर झुकाया और कुछ कदम हमेशा के लिए जा रहे मृतक के साथ रखे। सिकंदराबाद बुलंदशहर तिराहे पर एक दरोगा सहित लगभग आधा दर्जन पुलिसकर्मी खड़े थे। शवयात्रा को आता देखकर वो सभी सतर्क मुद्रा में खड़े हो गए।उन सभी ने न केवल कुछ कदम शवयात्रा का साथ दिया बल्कि सिर झुकाकर जाने वाले को नमन भी किया। किसी बड़ी हस्ती की मृत्यु पर सरकारी प्रोटोकॉल के तहत सुरक्षाबलों द्वारा सलामी दी जाती है। क्या सलामी देने वाले सुरक्षाकर्मी हृदय से उस हस्ती को नमन करते हैं?उन पुलिसकर्मियों को देखकर ऐसा नहीं कहा जा सकता। स्वाभाविक सलामी में और प्रोटोकॉल की सलामी के अंतर को पहचानना कहां मुश्किल है। शवयात्रा श्मशान घाट में पहुंची। वहां की दुर्दशा को देखकर बेहद निराशा हुई। पक्का दाह-संस्कार स्थल बना होने के बावजूद कोई साफ-सफाई नहीं। चहुंओर गंदगी और झाड़ियां। संभवतः नगर पालिका परिषद के जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारियों के प्रति ईमानदार नहीं हैं।कुछ समय पहले हरियाणा के पलवल जिले के एक गांव में एक निकट संबंधी के अंतिम संस्कार में शामिल होने गया था। वहां भी ऐसी ही अव्यवस्था थी। श्मशान घाटों को साफ सुथरा और खूबसूरत बनाना चाहिए। जीवन भर के सुख दुखों से पार पाने के बाद जब कोई भी व्यक्ति इस घाट पर आये तो उसे जीवन के सुख दुखों का कोई संताप न रहे और उसे छोड़कर शेष जीवन बिताने के लिए वापस लौटने वाले लोग वहां एक दिन अनिवार्य रूप से आने के विचार से भयभीत न हों।चिता की अग्नि तेज हो गई तो दाह-संस्कार की सफलता के भरोसे के साथ सब लोग वापस लौट चले
शवयात्रा का आनंद









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