राजेश बैरागी।पहने हुए कपड़ों से वह शख्स आधुनिक नेता ही लग रहा था। अधिकारी को मिठाई के डिब्बे के साथ दीपावली की शुभकामनाएं देने आया था। पहले उसने एक मंत्री जी के घुटने की शल्य चिकित्सा के बाद उन्हें देखने जाने का जिक्र किया। फिर उसने जनहित में उठाए एक दो मामलों का जिक्र किया। किलोमीटरों दूर से मिठाई के डिब्बे के साथ दीपावली की शुभकामनाएं देने आने वाले की इतनी फालतू बातें सुनकर खुशी प्रकट करना अधिकारी की विवशता भी होती है और नैतिक कर्तव्य भी। नेताजी लोग इसी प्रकार अपने प्रभाव की दुकान चलाते हैं।जो लोग उन्हें ऐसा करते देखकर उनके प्रति श्रद्धाभाव से नतमस्तक हो जाते हैं, दरअसल वो नहीं जानते कि यह राजनीति के धंधे की दुकान का प्रवेश द्वार होता है।असल माल दुकान के अंदर रखा होता है। नेताजी ने जब यह मान लिया कि अधिकारी पर उनका पर्याप्त प्रभाव हो गया है तो वे मुद्दे पर आये। उन्होंने अधिकारी से कहा कि उनके परिचित ने फलां स्थान पर प्राधिकरण के खाली बेकार पड़े भूखंड पर थोड़ा सा कबाड़ रख लिया है और दो टिन की चादरें तानकर धूप बारिश से बचने के लिए बैठने की व्यवस्था कर ली है। कृपया उसे वहां से न हटाएं। अधिकारी ने नेताजी को बताया कि वह सात आठ सौ वर्गमीटर का भूखंड है जिसपर अवैध रूप से कबाड़ का धंधा किया जा रहा है। वहां बाकायदा टिन शेड बना लिया गया है। कबाड़ में कभी भी आग लगने से आसपास की औद्योगिक इकाइयों पर संकट आ सकता है। नेताजी ने बदल बदल कर बहुत सी दलीलें दीं, गरीब की रोजी रोटी चलने देने की बात कही परंतु अधिकारी महोदय टस से मस नहीं हुए। अधिकारी तब तक मिठाई का डिब्बा और दीपावली की शुभकामनाएं भुला चुके थे। कर्तव्य के समक्ष इन सब क्षुद्र वस्तुओं का महत्व भी नहीं होना चाहिए। बात बनती न देख नेताजी अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए। उन्होंने अधिकारी से कहा कि पंचायत चुनाव सामने हैं और उन्हें चुनाव लड़ना है। चुनाव में जनता को क्या बताएंगे कि एक समर्थक के धंधे की भी रक्षा नहीं कर पाए। आखिर जनता उन्हें वोट क्यों देगी।अधिकारी ने उन्हें लगभग डेढ़ महीने में भूखंड से कब्जा हटाने की छूट दे दी परंतु नेताजी संतुष्ट नहीं थे। मैं इस वार्तालाप का प्रत्यक्षदर्शी था। मैं विचार करने लगा कि जिस देश में नेता अवैध कब्जों और अवैध धंधों की रक्षा के नाम पर चुनाव लड़ते हैं, वहां कानून के राज की बात कितनी हास्यास्पद है। नेताजी डेढ़ महीने में प्राधिकरण के भूखंड से अपने परिचित के अवैध कब्जे को हटवाने का वादा तो कर गए परंतु वादे तो अक्सर टूट जाते हैं। और यह तो नेताजी का वादा है








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