किसान आंदोलन:और तीन घंटे बाद खाली हैं कुर्सियां खाली मैदान है

राजेश बैरागी।हालांकि मौसम के हिसाब से खेतों में फिलहाल काम नहीं और उससे भी ऊपर नोएडा में खेत नहीं बचे हैं परंतु किसान हैं। यह ऐसे ही है जैसे सोशल मीडिया के इस युग में बिना समाचार पत्र के पत्रकारों की फौज दिखाई देती है। तो खेत जो नहीं रहे, उनके हक की लड़ाई लड़ने के लिए आज एक बार फिर नोएडा के किसान प्राधिकरण मुख्यालय पर इकट्ठा हुए। दावा किया गया कि सभी 81 गांवों के किसान आए थे।उनके इरादे खतरनाक थे। किसानों के नेता अशोक चौहान ने इस बार आर या पार की कौल दी थी। अनिश्चितकालीन धरने का एलान किया गया। धरना स्थल पर खूब शोर शराबा हुआ। किसानों ने प्राधिकरण से ऐसे यक्ष प्रश्न पूछे कि उत्तर देने के लिए अधिकारियों के कद छोटे पड़ गये। विशेष कार्याधिकारी क्रांति शेखर सिंह को किसानों ने अपने प्रश्नों के उत्तर देने योग्य नहीं माना। सहायक पुलिस आयुक्त प्रवीण कुमार सिंह अपनी पुलिस फोर्स लेकर पूरे समय न केवल शांति व्यवस्था बनाने में जुटे रहे बल्कि किसानों और प्राधिकरण के बीच शांतिपूर्ण शास्त्रार्थ के समन्वयक की भूमिका भी उन्होंने निभाई। किसान नेता गरजते रहे परंतु प्राधिकरण को नहीं बरसना था तो वह नहीं बरसा। किसानों की आक्रामकता के समक्ष बैरिकेड बोने ही थे। उन्हें लांघकर प्राधिकरण पर चढ़ाई करने का दिखावा भी हुआ। बहरहाल पर्याप्त शक्ति प्रदर्शन के बाद किसानों ने प्राधिकरण अध्यक्ष से नीचे किसी से भी बात नहीं करने का संकल्प लिया और अनिश्चितकालीन धरना अनिश्चित धरने में बदल गया। शाम को तंबू तो तना हुआ था परंतु कोई किसान वहां मौजूद नहीं था। हां वहां किसानों द्वारा प्यास बुझाने के लिए इस्तेमाल किए गए पैकेट बंद पानी की प्लास्टिक की खाली थैलियां इफरात में पड़ी हुई थीं।मुझे राजकपूर साहब की कालजई फिल्म जौकर का वह गीत याद हो आया -और तीन घंटे बाद,खाली हैं कुर्सियां खाली मैदान है

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