राजेश बैरागी।गाजियाबाद एक पुराना शहर है। मैं वहां पैदा हुआ और मैंने उसे एक कस्बे जैसे से वर्तमान महानगर बनते देखा है। इस शहर में सबकुछ है। राजनीतिक, साहित्यिक गतिविधियां हैं,पूरा प्रशासनिक अमला है, छोटी छोटी दुकानों से लेकर आधुनिक शोरूम हैं, बड़े बड़े विद्यालय और महाविद्यालय हैं। एक भारी भरकम नगर निगम भी है।इस शहर की जीवन रेखाएं इसकी सड़कें अन्य व्यस्ततम शहरों की भांति वाहनों की भीड़ को संभालती हैं। बीते शनिवार को जीटी रोड पर राकेश मार्ग के निकट किसी वाहन की चपेट में आकर तीन महिलाओं की दर्दनाक मौत हो गई। यह वाकया सुबह का था, इस घटना को लेकर आक्रोशित लोगों ने शाम को जाम लगाया।ओप्यूलेंट मॉल से लेकर लालकुआं तक जाम हो गया। कमिश्नरेट की यातायात पुलिस रास्ता बताने को भी उपलब्ध नहीं थी। वहां से वाहन मोड़कर वापस अंबेडकर रोड से कालका गढ़ी चौक होते हुए नेहरू नगर से फ्लाईओवर के रास्ते एन एच 9 पर पहुंचने का प्रयास करने वाले नेहरू नगर के जाम में फंसे खड़े रहे।शाम को सात आठ बजे नजारा यह था कि जिधर भी जाओ, उधर जाम ही था। सड़क पर बिना कारण चार घंटे बिताना कैसा अनुभव होता है? मैं शाम 5 बजे से सड़क पर था परंतु कहीं भी पहुंच नहीं पा रहा था। तीन दिन पहले जनपद गौतमबुद्धनगर में कार्यरत एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बता रहे थे कि बंगलूरू में यातायात की इतनी बुरी गत है कि सिटी बस में सफर करने वाले कई घंटे उसी बस में सो लेते हैं। बंगलूरू से गाजियाबाद की क्या तुलना की जा सकती है? क्या दोनों शहर यातायात प्रबंधन में एक जैसे हैं? मैं विचार कर रहा था कि सुबह की दर्दनाक दुर्घटना की प्रतिक्रिया में शाम को लगने वाले जाम से यातायात पुलिस अनभिज्ञ कैसे हो सकती है। और यदि हम इतने ही बेफिक्र हैं तो हमारा कल्याण ऊपर वाला ही कर सकता है








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