राजेश बैरागी।किसी अधिकारी के पद पर रहने और उसके तबादले के बाद का अनुभव कैसा होता है? अमूमन सभी अधिकारी अपनी प्रत्येक नियुक्ति के दौरान उस पद के कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अच्छी, बहुत अच्छी या खराब छवि का निर्माण करते हैं। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त रहे आईएएस अतुल वत्स ने उन्नीस महीने के कार्यकाल में दो क्षेत्रों में विशेष सफलता हासिल की। उन्होंने जीडीए को कर्जमुक्त करने के साथ एक लाभकारी संस्थान में बदल दिया। फिलहाल जीडीए के खाते में 1300 करोड़ रुपए की धनराशि जमा बताई जाती है।दूसरा और महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने जीडीए अधिकार क्षेत्र में निरंतर पनप रहीं अवैध कॉलोनियों पर बुलडोजर चला कर किया।इसी दौरान उनके प्रयासों से प्राधिकरण को चार सौ करोड़ रुपए अवस्थापना निधि से प्राप्त हुए जिनसे वसुंधरा और इंदिरापुरम के लिए एलेवेटेड रोड पर दो स्लिप रोड बनेंगे तथा गाजियाबाद में कुछ और महत्वपूर्ण रोड बनाए जाएंगे।पहल पोर्टल, जनसुनवाई और आईजीआरएस पर प्राप्त शिकायतों पर प्रभावी तथा समयबद्ध कार्रवाई जैसे और भी कदम उनके द्वारा उठाए गए। अतुल वत्स और भी कई महत्वपूर्ण कार्यों की योजना बना रहे थे परन्तु शासन को उनकी हाथरस के जिलाधिकारी के तौर पर अधिक आवश्यकता अनुभव हुई होगी। उनके स्थान पर नियुक्त किए गए नंद किशोर कलाल 2018 बैच के आईएएस और मूल रूप से राजस्थान के निवासी हैं। यहां से पहले वे रामपुर में मुख्य विकास अधिकारी का पद संभाल रहे थे। युवा होने के साथ उन्हें भी परिश्रमी और सख्त प्रशासक माना जाता है।पदभार संभालने के बाद उन्होंने भी अवैध कॉलोनियों पर बुलडोजर कार्रवाई को जारी रखा है। दरअसल जीडीए एक नगरीय विकास प्राधिकरण है।इसका कार्यक्षेत्र पुराने गाजियाबाद नगर से लेकर मोदीनगर, मुरादनगर और लोनी तक है। दिल्ली के साथ सीमा साझा करने के कारण यहां अल्प आय वर्ग और दैनिक वेतन भोगी लोगों की संख्या बहुत अधिक है।उन सबके लिए आवासीय सुविधा उपलब्ध कराना जिम्मेदारी भी है और चुनौती भी है। इसके साथ ही अवैध कॉलोनियों पर नियंत्रण रखना भी एक बड़ी चुनौती है। अतुल वत्स के समक्ष भी यही चुनौती थीं ,नंद लाल कलाल के समक्ष भी यही हैं
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण: आर्थिक स्थिति संभालने के साथ अवैध कॉलोनियों हैं बड़ी चुनौती









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