राजेश बैरागी।मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की कोर्ट रोजाना की भांति चल रही थी। एक वकील साहब ने अपनी बारी आने पर बोलना शुरू किया,-माननीय अदालत जानती है कि पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद से थानों में एफआईआर दर्ज कराना कितना मुश्किल हो गया है।जब तक कमिश्नर की इजाजत न हो कोई एफआईआर दर्ज नहीं होती है और पुलिस कमिश्नर से आम आदमी का मिलना संभव नहीं है। वकील साहब ने बोलना जारी रखा,-पुलिस कमिश्नर तो केवल मीडिया को बयान देने और कैमरे पर आने के लिए हैं। वकील साहब यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा,-जब एस एस पी होता था तो लोग उससे मिलकर अपनी समस्या बता देते थे परन्तु कमिश्नरेट बनने के बाद आम नागरिकों का पुलिस के शीर्ष अधिकारी से मिलना संभव नहीं रहा है।’ दरअसल वकील साहब गायत्री ओरा नामक बिल्डर प्रोजेक्ट में एक फ्लैट बायर्स को पैसे भुगतान करने के बावजूद उसके साथ कथित तौर पर हो रहे अमानत में खयानत के मामले में अदालत के माध्यम से रिपोर्ट दर्ज कराने की गुहार लगा रहे थे। उन्होंने बयां किया,-बिल्डर ने उनके मुवक्किल से 28 लाख रुपए लेकर फ्लैट किसी अन्य को बेच दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा यह अकेला मामला नहीं है बल्कि सभी बिल्डरों द्वारा अपने बहुत से फ्लैट बायर्स के साथ ऐसा ही किया जाता है। पैसा किसी से लिया जाता है और फ्लैट किसी दूसरे को आवंटित कर दिया जाता है।ऐसे मामलों में पुलिस आसानी से रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है








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