राजेश बैरागी।दो दिन पहले (गत शुक्रवार को) यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण यीडा ने निर्धारित तिथि पर 267 आवासीय भूखंडों का पूरी पारदर्शिता के साथ ड्रॉ कर दिया।इसी प्रकार उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण यूपीसीडा के क्षेत्रीय प्रबंधक कार्यालय में भी इसी दिन 42 औद्योगिक भूखंडों का सफलतापूर्वक ड्रा आयोजित हुआ।इन दोनों ड्रा आयोजनों में एक बात समान रही।यीडा ने अपने ड्रा की ईमानदारी के लिए तीन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को आमंत्रित किया जबकि यूपीसीडा ने अपने ड्रा की ईमानदारी के लिए स्कूली बच्चों को बुलाया। लगभग डेढ़ दशक पहले ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में भूखंडों के एक ड्रा के दौरान प्राधिकरण कर्मी द्वारा किसी अपने को भूखंड दिलाने के लिए कमीज की आस्तीन में पर्ची छुपाकर लाने का मामला उजागर हुआ था। उससे पहले 2004 में नोएडा प्राधिकरण ने एक आवासीय भूखण्ड योजना के ड्रा वाले दिन अपने चहेतों को आवंटित भूखंडों की सूची पढ़कर सुना दी थी।उस समय नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर इंजीनियर से आईएएस बने देवदत्त शर्मा विराजमान थे और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी।हो हल्ला होने पर वह ड्रा उसी दिन शाम को रद्द कर दिया गया। फिर यह ड्रा चार वर्ष बाद हुआ और उसमें लखनऊ से कुछ बड़े अधिकारी और एक न्यायाधीश को ईमानदारी से ड्रॉ कराने भेजा गया। मैं वापस गत शुक्रवार को यीडा व यूपीसीडा के ड्रा पर लौटता हूं। न्यायाधीशों की उपस्थिति में या स्कूली छात्रों से पर्ची निकलवाने में कुछ भी गलत नहीं है। अंतर केवल इतना है कि प्राधिकरणों ने कुछ घटनाओं के बाद अपनी सत्यनिष्ठा खो दी है।अब शुचिता, स्पष्टता और पारदर्शिता के प्रमाण-पत्र के लिए न्यायाधीशों या स्कूली बच्चों पर निर्भरता हो गई है। अन्यथा दूसरे स्थानों पर पर्यवेक्षक बनकर जाने वाले प्राधिकरणों के वरिष्ठ अधिकारी स्वयं अपने संस्थान में होने वाले भूखंडों के वितरण में पारदर्शिता की गारंटी क्यों नहीं उठा सकते हैं
यीडा और यूपीसीडा में भूखंडों का सफल ड्रा:तीन न्यायाधीशों की उपस्थिति और बाल भरोसा









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