राजेश बैरागी।भिन्न-भिन्न प्रकार से राजस्व आय बढ़ाने के लिए तथा जनता की सुविधा की दृष्टि से प्राधिकरणों द्वारा यूनीपोल लगाने व एफ ओ बी के लिए नियुक्त ठेकेदारों द्वारा कानूनी लड़ाई में फंसाकर प्राधिकरणों को ही चूना लगाया जाता है। ऐसे ठेकेदारों द्वारा मामला अदालत में होने पर नाम बदलकर पुनः ठेका हासिल कर लिया जाता है। हालांकि हाल ही में नोएडा मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एन एम आर सी) द्वारा मेट्रो पिलर व स्टेशनों पर विज्ञापन के लिए छोड़े गए ठेकों में ऐसे बदनाम ठेकेदारों को ठेका देने से परहेज़ किया गया है।
नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों द्वारा अपनी आय बढ़ाने के लिए तमाम तरह के उपाय किए जाते हैं।इन उपायों में सड़कों के किनारे खाली स्थानों पर यूनीपोल लगाकर प्रचार करने तथा व्यस्त सड़कों के भीड़भाड़ वाले स्थानों पर फुट ओवर ब्रिज बनाना भी शामिल है। इन्हें आमतौर पर निजी विज्ञापन एजेंसियों द्वारा क्रमशः तीन वर्ष और बीस वर्ष के ठेके पर लिया जाता है। यूनीपोल अपने नाम के अनुरूप एक बड़ी पोल का धंधा है। यूनीपोल लगाने वाला ठेकेदार न केवल प्राधिकरण द्वारा निर्धारित आकार से बड़े यूनीपोल लगाता है बल्कि ठेके से कई गुना अवैध यूनीपोल लगाकर कमाई करता है। इसके अलावा यूनीपोल के दोनों ओर विज्ञापन करना भी ठेके की शर्तों का उल्लंघन है।
यह सब प्राधिकरण के संबंधित विभाग की मिलीभगत से होता है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में पिछले दिनों मीडिया में मामला उछलने पर ऐसे अनेक यूनीपोल उखाड़े गये जो अवैध रूप से लगाए गए थे। इसके बाद खेल शुरू होता है प्राधिकरण की देय धनराशि को पचाने का।2018 में अंश इंटरनेशनल और चिनार इम्पैक्स नामक विज्ञापन एजेंसियों को छोड़ें गये सात टेंडर के ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के करोड़ों रुपए बकाया हैं। दोनों एजेंसियां पहले उच्च न्यायालय इलाहाबाद, फिर आर्बिट्रेशन में और उसके बाद अब वाणिज्यिक न्यायालय में पैसा बचाने के लिए मुकदमा लड़ रही हैं।इन एजेंसियों का कहना है कि कोरोना काल में उनका धंधा ठप्प रहा, उन्हें खाली स्थान उपलब्ध नहीं कराया गया तथा बिजली कनेक्शन के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया।
प्राधिकरण ने आर्बिट्रेशन कोर्ट में सभी आरोपों को झुठलाते हुए दस्तावेजी सबूत प्रस्तुत किए तथा कोरोना काल का लाभ देते हुए अदालत ने एक उचित बकाया धनराशि का निर्धारण किया। परंतु आर्बिट्रेशन कोर्ट के फैसले को दोनों एजेंसियों ने वाणिज्यिक कोर्ट में चुनौती दी है। हालांकि प्राधिकरण ने भी वाणिज्यिक कोर्ट की शरण ली है।इसी प्रकार शहर में व्यस्त सड़कों पर बनाए जा रहे फुट ओवर ब्रिज वास्तव में अनुपयोगी सिद्ध होते हैं। न्यूनतम लोग फुट ओवर ब्रिज पर चढ़कर सड़क पार करना पसंद करते हैं। इसके स्थान पर दिल्ली की तर्ज पर सड़कों के नीचे भूमिगत पैदल पार पथ बनाया जाना अधिक उपयोगी होता है।
परंतु करोड़ों रुपए खर्च कर एफ ओ बी बनाने वाले ठेकेदारों के लिए यह बीस वर्षों के लिए फायदे का ही सौदा होता है।एफ ओ बी विज्ञापन से मोटी आमदनी करने के साधन हैं। प्राधिकरण को एक निश्चित धनराशि रॉयल्टी के रूप में मिलती जिस पर आमतौर पर झगड़ा रहता है।एफ ओ बी को साफ सुथरा तथा दुरुस्त भी नहीं रखा जाता।एफ ओ बी पर लगाई जाने वाली लिफ्ट आमतौर पर खराब या बंद पड़ी रहती हैं।उल्लेखनीय है कि प्राधिकरण से कानूनी लड़ाई लड़ने वाली विज्ञापन एजेंसी नाम और स्वामित्व बदलकर फिर प्राधिकरण से यूनीपोल के ठेके हासिल कर लेती हैं। प्राधिकरण के संबंधित विभाग को यह जानकारी होती है परंतु वह अपनी आंखें बंद कर लेता है। हालांकि नोएडा मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (एन एम आर सी) ने हाल ही में नोएडा-ग्रेटर नोएडा मेट्रो के पिलर व स्टेशनों पर विज्ञापन के ठेके छोड़ने में ऐसे लोगों से परहेज़ किया है।
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