राजेश बैरागी।मैंने आज एक एक बूंद पानी का सदुपयोग किया।हालात ही ऐसे थे। दरअसल मैं ग्रेटर नोएडा स्थित यूपीसीडा की जिस अंसल गोल्फ लिंक 2 नामक हाउसिंग सोसायटी में निवास करता हूं, उसे अंसल हाउसिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी ने विकसित किया है।यूपीसीडा और अंसल के बीच हुए एम ओ यू के अनुसार अंसल को यह सोसायटी पूरी तरह विकसित कर पांच वर्ष में यानी 2001 में यूपीसीडा को वापस सौंप देनी थी। परंतु दोनों की मिलीभगत कहें या अनदेखी,कई बार पांच वर्ष बीत जाने पर भी आज तक यह सोसायटी न तो पूरी तरह विकसित हो पाई है और न यूपीसीडा ने इसे अपनाया है। बसावट बढ़ने से सोसायटी के संसाधन कमजोर पड़ने लगे हैं। पानी और बिजली आपूर्ति बाधित होने लगी है।जब पानी भरपूर मिलता है तो लोग अपनी गाड़ियों को भी खूब नहलाते हैं।जब पानी नहीं आता है तो लोग यूपीसीडा और अंसल को कोसते हुए दैनिक क्रियाओं से निवृत्त हुए बगैर और बगैर नहाए अपने काम धंधे पर रवाना हो जाते हैं।चार सौ मिलीलीटर की आधी भरी बोतल के पानी से हाथ धोने का अनुभव अलग ही है।कम से कम पानी से हाथों को भिगोने के लिए अरब देश के नागरिकों से सीखना चाहिए जो हमारे अनुसार हाथों को उल्टा धोते हैं। जबकि हाथ धोने के लिए हाथों को नीचे करके बूंद बूंद पानी डालना चाहिए।मैंने आज ऐसा ही किया। ट्रांसफार्मर फुंकने से बिजली और पानी दोनों नहीं थे। इन्वर्टर साथ दे रहा था परंतु नलों की टोंटियां खुद प्यासी खड़ी थीं। घड़ा, बाल्टी,जग,मग सबमें देखा, पानी कहीं नहीं था। अड़ोसी पड़ोसी भी समान समस्या से पीड़ित थे लिहाजा पड़ोसी धर्म से परिचित होने के बावजूद उसे निभाने में असमर्थता व्यक्त कर रहे थे। पानी को बहते हुए या बहाते हुए पानी के महत्व का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। यह केवल उसकी अनुपस्थिति में ही हो सकता है। मैंने घर की बालकनी से देखा, सर्विस ट्रांसफार्मर लगाया जा रहा था। मेरी सूख चुकी आंखों में पानी भर आया।(
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