नोएडा प्राधिकरण का 295 करोड़ रुपए मुआवजा भुगतान मामला: कौन कौन शामिल रहे होंगे इस खेल में?

राजेश बैरागी।छलेरा बांगर गांव की जिस भूमि पर नोएडा सेक्टर-18 में डीएलएफ मॉल खड़ा है, उसकी सामान्य मुआवजा दर 181.87 प्रति वर्ग गज थी। उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने रेड्डी रवन्ना के पक्ष में दिनांक 28 अक्टूबर 2021 को दिए गए निर्णय में यह मुआवजा दर 110000/- प्रति वर्ग गज तय की जिसमें से आधी धनराशि को विकास शुल्क के रूप में घटाकर और सोलेशियम तथा ब्याज जोड़कर उसे 350 करोड़ रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया। डीएलएफ मॉल को नोएडा प्राधिकरण ने 54320.18 वर्गमीटर भूमि मात्र 173 करोड़ रुपए में आवंटित की है। यह भूमि रेड्डी रवन्ना की कथित भूमि की चार गुना है। यदि इस प्रकार देखा जाए तो रेड्डी रवन्ना को अधिकतम 68 करोड़ रुपए ही दिये जाने चाहिए थे और क्या अच्छा होता कि प्राधिकरण उसकी कथित भूमि ही उसे दे देता। आखिर इतने बड़े पैमाने पर हुए इस खेल में कौन-कौन खिलाड़ी रहे होंगे। क्या यह नोएडा प्राधिकरण से लेकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तक और वहां से शासन में बैठे उद्योग विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारियों से लेकर वापस नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के द्वारा रचित एक विरले किस्म का घोटाला है?
इसकी पड़ताल करते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि नोएडा प्राधिकरण ने रेड्डी रवन्ना के दावे को किस प्रकार चुनौती दी। क्या उच्च न्यायालय के समक्ष प्राधिकरण ने ठीक प्रकार से अपना पक्ष प्रस्तुत किया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को क्यों लगा कि उस भूमि का मुआवजा 110000/- रुपए प्रति वर्ग गज होना चाहिए।350 करोड़ रुपए मुआवजा देने के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के स्थान पर रेड्डी रवन्ना से समझौता वार्ता करने का आदेश देने वाले शासन में बैठे उच्चाधिकारियों की क्या मंशा रही होगी? और प्राधिकरण के तत्कालीन शीर्ष अधिकारियों ने शासन के आदेश पर रेड्डी रवन्ना से समझौता वार्ता करना क्यों स्वीकार किया जबकि प्राधिकरण बहुत से साधारण किसानों से उनकी भूमि के मुआवजा और आबादी की भूमि पर कब्जे को लेकर पिछले चार दशकों तक से मुकदमे लड़ता आ रहा है। यदि उक्त भूमि के एक अन्य दावेदार विष्णु ने सुप्रीम कोर्ट में अपील और क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल न की होती तो संभवतः यह अरबों रुपए का अजीबोगरीब घोटाला प्राधिकरण के बहुत से दूसरे घोटालों की भांति इतिहास की कब्र में दफ़न पड़ा रहता। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी 23 जुलाई को उच्च न्यायालय इलाहाबाद को 28 अक्टूबर 2021 के उसके आदेश को खारिज करने के साथ इस समूचे प्रकरण का पुनः परीक्षण का आदेश दिया है।शेष कहानी के लिए आगामी पोस्ट की प्रतीक्षा करें।(

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