जिम्स ग्रेटर नोएडा में मानसिक रोगी की दुर्दशा पर स्यापा

राजेश बैरागी- क्या हम नकारात्मक मानसिक रोगी हैं? राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान जिम्स ग्रेटर नोएडा में एक रोगी को बाथरूम में कथित तौर पर तड़पने के समाचार और वीडियो चलाए जा रहे हैं। सरकारी चिकित्सालयों में रोगियों के साथ लापरवाही बरता जाना सामान्य सी बात है परंतु जिम्स ग्रेटर नोएडा की बात और है। पिछले एक दशक में इस संस्थान ने अभूतपूर्व उन्नति की है। इसमें आधुनिक चिकित्सा के लगभग सभी विभागों की स्थापना हो चुकी है। यहां प्रतिदिन डेढ़ हजार से अधिक लोग ओपीडी में इलाज कराने पहुंचते हैं। तीन सौ बिस्तरों वाले इस अस्पताल में चार सौ से अधिक रोगी हमेशा भर्ती रहते हैं।कोरोना काल में इस संस्थान का काम उत्कृष्ट स्तर का रहा है। यह संस्थान प्रतिवर्ष सैंकड़ों एमबीबीएस और एमडी डॉक्टर के साथ पैरामेडिकल स्टाफ को तैयार कर रहा है। इतने बड़े संस्थान में किसी मानसिक रोगी को सम्हालने में हुई अनदेखी क्या इतनी बड़ी है कि उसे व्यापक रूप से प्रचारित प्रसारित किया जाना चाहिए?

कुछ लोग ऐसे ही अवसरों की प्रतीक्षा ही नहीं करते हैं बल्कि ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं। नोएडा ग्रेटर नोएडा जैसे औद्योगिक आर्थिक महत्व के शहरों में ब्लैकमेल करने वाले लोगों की एक पूरी फौज खड़ी हो चुकी है। ये लोग किसी समस्या का समाधान नहीं हैं।इनका उद्देश्य समस्या को बढ़ा चढ़ाकर सरकारी गैर सरकारी संस्थानों पर अपना प्रभाव ज़माना और फिर निजी लाभ कमाना है। प्राधिकरण के अधिकारी इन तथाकथित समाजसेवियों, आवाज बुलंद करने वालों और फिर ब्लैकमेल करने वालों से आजिज हैं।जैसा कल एक पोस्ट में मैंने लिखा था कि व्हाट्सएप और ट्विटर मुफ्त में शिकायत करने के उपकरण बन गए हैं। यहां से लखनऊ तक और केंद्र सरकार तक समस्या को प्रचारित कर हम किसी मानसिक रोगी की कोई सहायता नहीं कर रहे हैं और न अस्पताल को ही सुधारने की हमारी कोई मंशा है। मंशा क्या है यह जगजाहिर है परंतु इससे एक उभरते हुए अच्छे चिकित्सा संस्थान पर दाग तो लगाया ही जा सकता है।

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