तंत्र की बेहतरी के लिए आवश्यक है नीयत की बेहतरी
राजेश बैरागी।क्या तंत्र (सिस्टम) व्यक्ति आधारित होता है?यह प्रश्न जनपद गौतमबुद्धनगर में कार्यरत तीनों औद्योगिक विकास प्राधिकरणों नोएडा ग्रेटर नोएडा व यीडा को लेकर बेहद अहम हो गया है।यीडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ अरुणवीर सिंह चाहते हैं कि ऐसा तंत्र विकसित हो जाए कि वे रहें न रहें, कोई और अच्छा या बुरा मुख्य कार्यपालक अधिकारी आए,परन्तु तंत्र अपना काम करता रहे। इसी प्रकार ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रवि कुमार एनजी भी कर्नाटक की तर्ज पर व्यक्ति के स्थान पर व्यवस्था को महत्व देने की बात करते हैं।हालांकि मुख्य कुर्सी पर बैठने वाला और उसकी टीम के अन्य सदस्य क्या केवल तंत्र के यंत्र बनकर रह सकते हैं? इससे भी आगे का प्रश्न यह है कि समय के साथ बदलने वाली परिस्थितियों में भी वर्षों पुरानी व्यवस्था के अधीन रहकर क्या अपने कार्यों को अंजाम दिया जा सकता है? एक और प्रश्न यह भी है कि जिस प्रकार पिछले दो दशकों में प्राधिकरणों के रोजमर्रा के कार्यों में भी राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा है, क्या ऐसी परिस्थितियों में भी किसी एक निर्धारित व्यवस्था को दृढ़ता से लागू रखा जा सकता है?
यदि तीन साढ़े तीन दशक पीछे जाएं तो विकसित हो रहे नोएडा में एक अच्छा होटल या रेस्तरां ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। सेक्टर 8 की झुग्गी-बस्ती में पांच वर्गमीटर के एक क्योस्क में चिप-चाप नाम से एक ढाबा चलना शुरू हुआ था और विकल्प न होने के कारण तेजी से लोकप्रिय हो गया था। तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष योगेश चंद्रा ने शहर की आवश्यकता के दृष्टिगत सेक्टर दो में नोएडा दादरी मुख्य मार्ग पर निरूला’ज होटल को भूमि आवंटित कर दी।यह भूमि एक पार्क को आधा समाप्त कर दी गई थी जो अपराध था। चर्चा थी कि इसके लिए होटल मालिक से कुछ लाख रुपए रिश्वत ली गई थी। शहर की सुविधा के उद्देश्य से एक अच्छे होटल की आवश्यकता को एक पार्क की बलि देकर पूरा किया गया। क्या बाद में आने वाले अध्यक्ष या मुख्य कार्यपालक अधिकारियों को इस व्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहिए था? बाद में आए रवि माथुर ने हरित पट्टी के लिए निर्धारित सेक्टर 32 की भूमि पर आवासीय भूखंडों की योजना लागू कर दी। इस योजना को न्यायालय में चुनौती मिलने पर वापस लिया गया। क्या यह व्यवस्था अनुकरणीय थी? उनके बाद अध्यक्ष सह मुख्य कार्यपालक अधिकारी बनकर आयीं नीरा यादव ने नोएडा को विकास के रास्ते पर ताबड़तोड़ दौड़ा दिया। संपत्तियों के आवंटन और निरस्तीकरण का ऐसा दौर कभी नहीं चला। उनपर अपने अधिकारों के दुरुपयोग के आरोप लगे और उन्हें राज्य के मुख्य सचिव जैसे पद पर रहने के बावजूद जेल में रहना पड़ा। ग्रेटर नोएडा में इंडिया एक्सपो मार्ट जैसी बहुद्देशीय परियोजना किसी एक व्यक्ति के स्वामित्व में चलने के लिए किया गया आवंटन कितना उचित है?2007 के बाद से राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते बिल्डर परियोजनाओं की आंधी ने तीनों प्राधिकरणों के मास्टर प्लान की ऐसी बैंड बजाई कि न निगलते बन रहा है और न उगलते। मात्र दर्जन भर बिल्डरों ने लाखों फ्लैट बायर्स का जीवन नर्क बना दिया है। तंत्र का विकास भी अन्य विकास प्रक्रियाओं जैसे ही होता है। बाढ़ जिधर ज्यादा फैलती है,उधर ही बांध बनाए जाते हैं। एक मजबूत तंत्र की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता परंतु उस तंत्र को चलाने के लिए समय समय पर नियुक्त होने वाले अधिकारी कर्मचारियों द्वारा परिस्थिति अनुकूल और विवेकाधीन व्यवहार किया जाना चाहिए। यदि नीयत ठीक नहीं है तो तंत्र को चलाने वाले लोग उसे नष्ट कर सकते हैं। यदि नीयत ठीक है तो तंत्र की क्या चिंता
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