राजेश बैरागी।नोएडा शहर में सीवरेज सिस्टम और पेयजल आपूर्ति की लाइनें क्या अबूझ पहेली बनी हुई हैं? लगभग एक सप्ताह पहले मेरे द्वारा नोएडा प्राधिकरण के जल एवं सीवर विभाग के महाप्रबंधक राघवेन्द्र प्रताप सिंह तथा इसी विभाग के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी सतीश पाल से निम्नलिखित बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई थी –
- नोएडा शहर में सीवरेज और पेयजल की लाइनों की लम्बाई कितनी है?
- नोएडा शहर में डाली गई सीवरेज और पेयजल की लाइनें कितने वर्ष पुरानी हैं?
- इन लाइनों की आयु कितनी होती है?
- क्या सीवरेज और पेयजल में बहने वाले रसायनों से इन लाइनों की आयु पर कोई असर आता है?
- क्या जमीन के नीचे दबी इन लाइनों में लीकेज की जानकारी हासिल करने के लिए कोई मैकेनिज्म है? यदि नहीं है तो लीकेज से होने वाली जमीन धंसने की घटनाओं से कैसे बचा जा सकता है?
दरअसल पिछले दिनों लीकेज से नोएडा शहर में दो सार्वजनिक स्थानों पर लगातार जमीन धंसने की घटनाएं हुई थीं। यह सौभाग्य रहा कि उन घटनाओं में कोई जनहानि नहीं हुई। प्राधिकरण के जल सीवर विभाग ने तत्काल कार्रवाई करते हुए लीकेज ठीक करने के साथ धंसी हुई जगह को समतल भी करा दिया। क्या इससे भविष्य में होने वाली ऐसी घटनाओं पर रोक लग गई?इन घटनाओं के दृष्टिगत मैंने प्राधिकरण के जिम्मेदार अधिकारियों से उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर मांगे थे। परंतु मेरा अनुमान है कि प्राधिकरण के पास उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर या ऐसे कहा जाए कि शहर को चलाने के लिए सीवरेज और पेयजल तंत्र की जानकारी उपलब्ध नहीं है। अन्य स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार नोएडा शहर की सीवरेज व पेयजल लाइनों की लंबाई लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर है।अधिकांश लाइनें चालीस बरस पुरानी हैं। एक सेवानिवृत्त अभियंता के अनुसार सीवरेज और पेयजल की लाइनों की सामान्य आयु 20 वर्ष होती है। सीवरेज में उत्पन्न होने वाली विभिन्न गैसों से लाइनें अपनी आयु से पहले भी कमजोर हो सकती हैं। प्राधिकरण के पास ऐसा कोई निगरानी तंत्र नहीं है जिससे जमीन में दबी लाइनों में लीकेज को पता किया जा सके। सुबह से कार्यालयों में साहब बनकर बैठने वाले जल सीवरेज विभाग के अभियंताओं का पूरा फोकस मेंटेनेंस के नाम पर अधिक से अधिक बिल फाड़ने पर रहता है। यह अलग बात है कि सतही सफाई के लिए नोएडा प्राधिकरण को गोल्डन सिटी अवार्ड भी मिल जाता है
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