राजेश बैरागी।गौतमबुद्धनगर जनपद के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के यहां सामूहिक भोज का कार्यक्रम चल रहा था। लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता दलगत भावना से ऊपर उठकर कांग्रेसी नेता के यहां भोजन प्रसाद पाने के लिए उपस्थित हुए।जैसा कि स्वाभाविक था, सबसे अधिक संख्या सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की थी। दरअसल जिस भी दल की सरकार राज्य या केंद्र में होती है,उसी पार्टी के नेता सर्वाधिक पाए जाते हैं। यह सत्तारूढ़ पार्टी की लोकप्रियता का पैमाना बिल्कुल नहीं है बल्कि ऐसा उसके सत्तारूढ़ होने की विशेषता के कारण होता है।तीन वरिष्ठ भाजपाई एक ही गोलमेज पर एक साथ बैठकर भोजन करें और अपने अपने दुःख दर्द साझा न करें, ऐसा भला कैसे हो सकता है। मुझे लगता है कि वर्तमान में कुछेक भाजपाईयों को छोड़कर शेष सभी के पास दुख दर्द ही हैं।दुख फूट फूटकर बाहर आ रहा था। एक नेता व्यंग्य में मोदी जी को अवतारी पुरूष बताकर अपनी अहमियत की उपेक्षा के दर्द को प्रकट कर रहे थे। दूसरे नेता ने मोदी और शाह को ऐसे विशेषण से नवाजा जिसका यहां जिक्र करना मेरी सेहत के लिए अनुकूल नहीं है। तीसरे नेता ने अब इस सरकार के बने रहने के औचित्य पर ही सवाल उठा दिया। तीनों नेतागण खाना कम खा रहे थे, अपनी पार्टी और सरकार को कोस ज्यादा रहे थे।बात अमेरिका तक जा पहुंची जब मोदी ने ट्रंप के दूसरे चुनाव में वहां जाकर चुनाव प्रचार किया था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव न होने,जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे से लेकर स्थानीय स्तर पर पैराशूट से संगठन में जिलाध्यक्ष आदि पदों पर नियुक्ति को लेकर सवाल ही सवाल उठाए जा रहे थे और जवाब में व्यंग्यात्मक मुस्कान बिखर जाती थी। एक सज्जन जो बड़े ध्यान से इस चर्चा को सुन रहे थे, बोले- 2027 के चुनाव में शायद ही इनमें से कोई भाजपा में दिखाई दे
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