राजेश बैरागी।कालजई हिंदी फिल्म ‘मदर इंडिया’ के एक खास चरित्र सुक्खी लाला से कौन परिचित नहीं है।उसका दोहरा चरित्र गढ़ा गया था, अकाल और बाढ़ जैसे संकटों में ग्रामीणों को मामूली मदद करने वाला और फसल तैयार होने पर उन्हें लूटने वाला। उसके चरित्र को जेहन में रखकर ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क स्थित शारदा यूनिवर्सिटी में दो दिन पहले 18 जुलाई की रात्रि में दंत चिकित्सा की 21 वर्षीय छात्रा ज्योति शर्मा की आत्महत्या के बाद के घटनाक्रम को समझें। विश्वविद्यालय प्रशासन ने सबसे पहले छात्रा के शव को फंदे से उतारकर अपने ही अस्पताल में रखवा दिया। बाद में उसके माता-पिता को जो गुरुग्राम के रहने वाले हैं, उन्हें सूचित किया गया। जब उन्होंने यहां पहुंचकर अन्य छात्रों के साथ शोर शराबा किया तो उन्हें सेठ (विश्वविद्यालय के मालिक) के गुंडों से न केवल धमकाया गया बल्कि कुछ छात्रों की उन गुंडों ने पिटाई भी की।उस समय पुलिस मौके पर मौजूद बताई गई है। विश्वविद्यालय और उसके अस्पताल की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों का होना तो लाजमी है। परंतु बाउंसर रूपी गुंडों का क्या काम है? और क्या ऐसे गुंडों को रखने की क्या कोई गाइडलाइन है? मैं पुनः मदर इंडिया के सुक्खी लाला पर आता हूं। वह एक टांग से कमजोर दिखाया गया था। उसके बस में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर किसी किसान की फसल या कमाई छीनना नहीं था। ऐसा करने के लिए उसने गुंडों या लठैतों की फौज रखी हुई थी। देश की स्वतंत्रता के कुछ वर्षों बाद बनी उस फिल्म में कहीं भी पुलिस की भूमिका नहीं दिखाई गई है।अपना राज आने के बावजूद देश अराजक स्थिति में था। सुक्खी जैसे लाला अपनी मनमानी चला सकते थे। क्या शारदा यूनिवर्सिटी जैसे सेठों के प्रतिष्ठानों में आज भी वही अराजक स्थिति है? देश में रुड़की, बनारस, दिल्ली जैसे बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में हजारों छात्र छात्रा हमेशा शिक्षा ग्रहण करते हैं। वहां बाउंसर रूपी गुंडों की तैनाती नहीं की जाती है। एक छात्रा को लंबे समय से उसके अध्यापकों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। प्रताड़ना इतनी अधिक थी कि छात्रा को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा। इस खराब व्यवस्था को जानने और ठीक करने के लिए सेठ ने कोई मैकेनिज्म तैयार नहीं किया परंतु न्याय की मांग करने वाले छात्रों को डराने-धमकाने और पीटने के लिए पहले से ही गुंडों की भर्ती की हुई है। दरअसल सुक्खी लाला मदर इंडिया का खलनायक था। उसके साथ फिल्म के नायक ने जो किया उसे फिल्मी कहानी कहकर खारिज किया जा सकता है परंतु सेठों के गुंडों को किसी भी युग में खारिज नहीं किया जा सकता है।(
शारदा यूनिवर्सिटी में छात्रा आत्महत्या मामला: सेठ की सुरक्षा में गुंडे

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