राजेश बैरागी । लगभग एक दशक पहले ग्रेटर नोएडा के सुनपुरा गांव में खुली शराब की दुकान को बंद कराने के लिए उसमें आग लगा दी गई थी।वह दुकान गांव के शराबखोरों के लिए सहज सुलभ ठिकाना बन गया था।उस अभियान का नेतृत्व गांव की साधारण और अधिकांश अनपढ़ महिलाओं ने किया था। मैं उस घटना का साक्षी था और मैं देख रहा था कि शराब की दुकान जलाने के आपराधिक कर्म करने के बाद उन ग्रामीण महिलाओं में खुशी का माहौल था और वो सब जली हुई शराब की दुकान के आगे लोकगीत गाकर नाच रही थीं।
जहां तक मुझे याद है उस घटना की कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी और न किसी महिला को थाना कचहरी में हाजिरी देनी पड़ी थी। महिला सशक्तिकरण की ऐसी घटनाएं और भी स्थानों पर समय समय पर होती रहती हैं।आज उसी सुनपुरा गांव की भूमि पर अवैध रूप से खोखा रखकर चलाई जा रही शराब की दुकान को हटाने गए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के दस्ते को भारी विरोध के चलते वापस लौटना पड़ा। क्या यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि यह विरोध ठेका समर्थक महिलाओं ने किया।ठेके के समर्थन में उतरी महिलाओं ने क्योस्क में घुसकर उसकी रक्षा की। क्या भारत बदल रहा है? क्या यह घटना नारी सशक्तिकरण की एक दशक में पतन की नई बानगी है?
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